अंतराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं देते हुए मेरी एक छोटी सी कविता ।
*गुमसुदा*
हृदय में प्रेम और
मुँह में मिठास लिए
नारी- शक्ति को जगाने वाला
वह शख्स मैं ही था
पर आज अपनी गुमसुदगी
दर्ज़ कराने आया हूँ।
गाँव का चौराहा हो या
दिल्ली का लालकिला
नारी- सशक्तिकरण की लौ जलाने वाला
वह शख्स मैं ही था
पर आज अपनी गुमसुदगी
दर्ज़ कराने आया हूँ।
संवेदना की स्याही से
हर एक पन्ने पर
नारी गाथा की प्रतिछवि बनाने वाला
वह शख्स मैं ही था
पर आज अपनी गुमसुदगी
दर्ज़ कराने आया हूँ।
कलुषित समाज में
शिक्षा का प्रदीप लेकर
नारी अधिकार का पाठ पढ़ाने वाला
वह शख्स मैं ही था
पर आज अपनी गुमसुदगी
दर्ज़ कराने आया हूँ।
© तरुण कुमार दाश
मैं आशिक हूँ
चाहो तो
ज़िंदगी की शमा बुझादो
छाति चीर कर
खून का सैलाब ला दो I
मुझे किसी से खफ़ा
न कोई शिकायत
मैं आशिक हूँ
मुझे
प्रेम करने दो ।
वह आशिक जो जान दे ,
मातृभूमि के वासते
उस पर गुलाब
चढ़ाने
दो ।
मेरी जान है
हिन्दोस्तान
जीना मरना उसके लिए
आज यह इज़हार
करने
दो ।
गरीबी की छांव में
पलता
हर एक शख़्स को
दो वक़्त की रोटी
खिलाने दो ।
बचपन
जो शिक्षा से दूर
किताबों
की भेंट से
ज्ञान
की गंगा
बहाने दो ।
एक
भारत श्रेष्ठ भारत
साकार
करने को
तन
मन से शपथ
लेने दो ।
वह
हिन्दू हो या मुसलमान
जात
धर्म से ऊपर
हर
एक को गले
लगाने दो ।
सरहद
पर वीर जो
शत्रु
संहार करें
वह
गर्व भरा माथा
चूमने दो ।
मैं
आशिक हूँ
मुझे
प्रेम करने दो ।
तरुण
कुमार दाश
प्राथमिक
शिक्षक
केंद्रीय
विद्यालय कोरापुट
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ReplyDeleteBhut bdiya sir.Main Asiq hun bhut bdiya
ReplyDeleteThank you for your views.
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